Friday 27 September 2013

Sowing The Seeds Of Change – Sustainable Agriculture Driven By Women In West Bengal


Self-sufficient farming gives women in Alipurduar food, health and confidence! At a time when chemicals have virtually replaced nutrients in food, women in this tiny area of West Bengal are growing food in a natural way – a method that is not just organic but uses ways to combine nature’s cycles and elements, creating a complementary ensemble. This is a way in which plants, animals, insects and all the elements of nature come together in harmony and leave little waste. Read further to know how they achieve this.

Till a few decades ago, most people in India grew vegetables and fruits in their own gardens. Then something changed. We shifted from ‘farming for food’ to ‘farming for money’. The start of the ‘green revolution’ meant that production increased but so did the farmer’s dependency on chemicals, fertilizers and pesticides. This shift in farming – from lifestyle to livelihood – also resulted in women keeping away from most farming decisions even though they were involved in the various tasks of sowing, reaping, harvesting and filling up the granaries. They aren’t called ‘farmers’ and they don’t benefit from training on farming concepts and schemes. But some women in villages in Alipurduar, West Bengal have managed to change this for themselves.
Self-sufficient farming gives women in Alipurduar food, health and confidence!
Self-sufficient farming gives women in Alipurduar food, health and confidence!TB
 See more at: http://www.thebetterindia.com/8307/tbi-women-sowing-the-seeds-of-change-sustainable-agriculture-driven-by-women-in-west-bengal/

डेंगू से कैसे बचें

कैसे और कब होता है डेंगू


डेंगू मादा एडीज इजिप्टी मच्छर के काटने से होता है। इन मच्छरों के शरीर पर चीते जैसी धारियां होती हैं। ये मच्छर दिन में, खासकर सुबह काटते हैं। डेंगू बरसात के मौसम और उसके फौरन बाद के महीनों यानी जुलाई से अक्टूबर में सबसे ज्यादा फैलता है क्योंकि इस मौसम में मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां होती हैं। एडीज इजिप्टी मच्छर बहुत ऊंचाई तक नहीं उड़ पाता।

कैसे फैलता है

डेंगू बुखार से पीड़ित मरीज के खून में डेंगू वायरस बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। जब कोई एडीज मच्छर डेंगू के किसी मरीज को काटता है तो वह उस मरीज का खून चूसता है। खून के साथ डेंगू वायरस भी मच्छर के शरीर में चला जाता है। जब डेंगू वायरस वाला वह मच्छर किसी और इंसान को काटता है तो उससे वह वायरस उस इंसान के शरीर में पहुंच जाता है, जिससे वह डेंगू वायरस से पीड़ित हो जाता है।

कब दिखती है बीमारी

काटे जाने के करीब 3-5 दिनों के बाद मरीज में डेंगू बुखार के लक्षण दिखने लगते हैं। शरीर में बीमारी पनपने की मियाद 3 से 10 दिनों की भी हो सकती है।

कितने तरह का होता है डेंगू

यह तीन तरह का होता है
1. क्लासिकल (साधारण) डेंगू बुखार
2. डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF)
3. डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS)

इन तीनों में से दूसरे और तीसरे तरह का डेंगू सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। साधारण डेंगू बुखार अपने आप ठीक हो जाता है और इससे जान जाने का खतरा नहीं होता लेकिन अगर किसी को DHF या DSS है और उसका फौरन इलाज शुरू नहीं किया जाता तो जान जा सकती है। इसलिए यह पहचानना सबसे जरूरी है कि बुखार साधारण डेंगू है, DHF है या DSS है।

लक्षण क्या-क्या साधारण डेंगू बुखार

ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार चढ़ना |सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होना
आंखों के पिछले हिस्से में दर्द होना, जो आंखों को दबाने या हिलाने से और बढ़ जाता है
बहुत ज्यादा कमजोरी लगना, भूख न लगना और जी मितलाना और मुंह का स्वाद खराब होना
गले में हल्का-सा दर्द होना शरीर खासकर चेहरे, गर्दन और छाती पर लाल-गुलाबी रंग के रैशेज होना

क्लासिकल साधारण डेंगू बुखार करीब 5 से 7 दिन तक रहता है और मरीज ठीक हो जाता है। ज्यादातर मामलों में इसी किस्म का डेंगू बुखार होता है।

डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF)
नाक और मसूढ़ों से खून आना
शौच या उलटी में खून आना
स्किन पर गहरे नीले-काले रंग के छोटे या बड़े चिकत्ते पड़ जाना

अगर क्लासिकल साधारण डेंगू बुखार के लक्षणों के साथ-साथ ये लक्षण भी दिखाई दें तो वह ष्ठ।।स्न हो सकता है। ब्लड टेस्ट से इसका पता लग सकता है।

डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS)

इस बुखार में DHF के लक्षणों के साथ-साथ 'शॉक' की अवस्था के भी कुछ लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे :

मरीज बहुत बेचैन हो जाता है और तेज बुखार के बावजूद उसकी स्किन ठंडी महसूस होती है।
मरीज धीरे-धीरे होश खोने लगता है।
मरीज की नाड़ी कभी तेज और कभी धीरे चलने लगती है। उसका ब्लड प्रेशर एकदम लो हो जाता है।

नोट : डेंगू से कई बार मल्टी ऑर्गन फेल्योर भी हो जाता है। इसमें सेल्स के अंदर मौजूद फ्लूइड बाहर निकल जाता है। पेट के अंदर पानी जमा हो जाता है। लंग्स और लिवर पर बुरा असर पड़ता है और ये काम करना बंद कर देते हैं।

कौन-से टेस्ट

अगर तेज बुखार हो, जॉइंट्स में तेज दर्द हो या शरीर पर रैशेज हों तो पहले दिन ही डेंगू का टेस्ट करा लेना चाहिए। अगर लक्षण नहीं हैं, पर तेज बुखार बना रहता है तो भी एक-दो दिन के इंतजार के बाद फिजिशियन के पास जरूर जाएं। शक होने पर डॉक्टर डेंगू की जांच कराएगा। डेंगू की जांच के लिए शुरुआत में एंटीजन ब्लड टेस्ट (एनएस 1) किया जाता है। इस टेस्ट में डेंगू शुरू में ज्यादा पॉजिटिव आता है, जबकि बाद में धीरे-धीरे पॉजिविटी कम होने लगती है। यह टेस्ट करीब 1000 से 1500 रुपये में होता है। अगर तीन-चार दिन के बाद टेस्ट कराते हैं तो एंटीबॉडी टेस्ट (डेंगू सिरॉलजी) कराना बेहतर है। इसके लिए 600 से 1500 रुपये लिए जाते हैं। डेंगू की जांच कराते हुए वाइट ब्लड सेल्स का टोटल काउंट और अलग-अलग काउंट करा लेना चाहिए। इस टेस्ट में प्लेटलेट्स की संख्या पता चल जाती है। डेंगू के टेस्ट ज्यादातर सभी अस्पतालों और लैब्स में हो जाते हैं। टेस्ट की रिपोर्ट 24 घंटे में आ जाती है। अच्छी लैब्स तो दो-तीन घंटे में भी रिपोर्ट दे देती हैं। ये टेस्ट खाली या भरे पेट, कैसे भी कराए जा सकते हैं।

प्लेटलेट्स की भूमिका

आमतौर पर तंदुरुस्त आदमी के शरीर में डेढ़ से दो लाख प्लेटलेट्स होते हैं। प्लेटलेट्स बॉडी की ब्लीडिंग रोकने का काम करती हैं। अगर प्लेटलेट्स एक लाख से कम हो जाएं तो उसकी वजह डेंगू हो सकता है। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि जिसे डेंगू हो, उसकी प्लेटलेट्स नीचे ही जाएं। प्लेटलेट्स अगर एक लाख से कम हैं तो मरीज को फौरन हॉस्पिटल में भर्ती कराना चाहिए। अगर प्लेटलेट्स गिरकर 20 हजार तक या उससे नीचे पहुंच जाएं तो प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। 40-50 हजार प्लेटलेट्स तक ब्लीडिंग नहीं होती। डेंगू का वायरस आमतौर पर प्लेटलेट्स कम कर देता है, जिससे बॉडी में ब्लीडिंग शुरू हो जाती है। अगर प्लेटलेट्स तेजी से गिर रहे हैं, मसलन सुबह एक लाख थे और दोपहर तक 50-60 हजार हो गए तो शाम तक गिरकर 20 हजार पर पहुंच सकते हैं। ऐसे में डॉक्टर प्लेटलेट्स का इंतजाम करने लगते हैं ताकि जरूरत पड़ते ही मरीज को प्लेटलेट्स चढ़ाए जा सकें। प्लेटलेट्स निकालने में तीन-चार घंटे लगते हैं।

बच्चों में खतरा ज्यादा

बच्चों का इम्युन सिस्टम ज्यादा कमजोर होता है और वे खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए उनके प्रति सचेत होने की ज्यादा जरूरत है। पैरंट्स ध्यान दें कि बच्चे घर से बाहर पूरे कपड़े पहनकर जाएं। जहां खेलते हों, वहां आसपास गंदा पानी न जमा हो। स्कूल प्रशासन इस बात का ध्यान रखे कि स्कूलों में मच्छर न पनप पाएं। बहुत छोटे बच्चे खुलकर बीमारी के बारे में बता भी नहीं पाते इसलिए अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, लगातार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। बच्चों को डेंगू हो तो उन्हें अस्पताल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें डीहाइड्रेशन (पानी की कमी) भी जल्दी होता है।

किस डॉक्टर को दिखाएं
डेंगू होने पर किसी अच्छे फिजिशियन के पास जाना चाहिए। बच्चों में डेंगू के लक्षण नजर आएं तो उसे पीडिअट्रिशन के पास ले जाएं।

इलाज
अगर मरीज को साधारण डेंगू बुखार है तो उसका इलाज व देखभाल घर पर की जा सकती है।
डॉक्टर की सलाह लेकर पैरासिटामोल (क्रोसिन आदि) ले सकते हैं।
एस्प्रिन (डिस्प्रिन आदि) बिल्कुल न लें। इनसे प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं।
अगर बुखार 102 डिग्री फॉरेनहाइट से ज्यादा है तो मरीज के शरीर पर पानी की पट्टियां रखें।
सामान्य रूप से खाना देना जारी रखें। बुखार की हालत में शरीर को और ज्यादा खाने की जरूरत होती है।
मरीज को आराम करने दें।

मरीज में DSS या DHF का एक भी लक्षण दिखाई दे तो उसे जल्दी-से-जल्दी डॉक्टर के पास ले जाएं। DSS और DHF बुखार में प्लेटलेट्स कम हो जाती हैं, जिससे शरीर के जरूरी हिस्से प्रभावित हो सकते हैं। डेंगू बुखार के हर मरीज को प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं होती, सिर्फ डेंगू हैमरेजिक और डेंगू शॉक सिंड्रोम बुखार में ही जरूरत पड़ने पर प्लेटलेट्स चढ़ाई जाती हैं। अगर सही समय पर इलाज शुरू कर दिया जाए तो DSS और DHF का पूरा इलाज मुमकिन है।

एलोपैथी
इसकी दवाई लक्षण देखकर और प्लेटलेट्स का ब्लड टेस्ट कराने के बाद ही दी जाती है। लेकिन किसी भी तरह के डेंगू में मरीज के शरीर में पानी की कमी नहीं आने देनी चाहिए। उसे खूब पानी और बाकी तरल पदार्थ (नीबू पानी, छाछ, नारियल पानी आदि) पिलाएं ताकि ब्लड गाढ़ा न हो और जमे नहीं। साथ ही, मरीज को पूरा आराम करना चाहिए। आराम भी डेंगू की दवा ही है।

आयुर्वेद 
आयुवेर्द में इसकी कोई पेटेंट दवा नहीं है। लेकिन डेंगू न हो, इसके लिए यह नुस्खा अपना सकते हैं।

एक कप पानी में एक चम्मच गिलोय का रस (अगर इसकी डंडी मिलती है तो चार इंच की डंडी लें। उस बेल से लें, जो नीम के पेड़ पर चढ़ी हो), दो काली मिर्च, तुलसी के पांच पत्ते और अदरक को मिलाकर पानी में उबालकर काढ़ा बनाए और 5 दिन तक लें। अगर चाहे तो इसमें थोड़ा-सा नमक और चीनी भी मिला सकते हैं। दिन में दो बार, सुबह नाश्ते के बाद और रात में डिनर से पहले लें।

बरतें एहतियात

ठंडा पानी न पीएं, मैदा और बासी खाना न खाएं।
खाने में हल्दी, अजवाइन, अदरक, हींग का ज्यादा-से-ज्यादा इस्तेमाल करें।
इस मौसम में पत्ते वाली सब्जियां, अरबी, फूलगोभी न खाएं।
हल्का खाना खाएं, जो आसानी से पच सके।
पूरी नींद लें, खूब पानी पीएं और पानी को उबालकर पीएं।
मिर्च मसाले और तला हुआ खाना न खाएं, भूख से कम खाएं, पेट भर न खाएं।
खूब पानी पीएं। छाछ, नारियल पानी, नीबू पानी आदि खूब पिएं।

बचाव भी इलाज
बीमारी से बचने के लिए फिजिकली फिट, मेंटली स्ट्रॉन्ग और इमोशनली बैलेंस रहें।


अच्छा खाएं, अच्छा पीएं और अच्छी नींद ले।


नाक के अंदर की तरफ सरसों का तेल लगाकर रखें। इससे तेल की चिकनाहट बाहर से बैक्टीरिया को नाक के अंदर जाने से रोकती है।

खाने में हल्दी का इस्तेमाल ज्यादा करें। सुबह आधा चम्मच हल्दी पानी के साथ या रात को आधा चम्मच हल्दी एक गिलास दूध या के साथ लें। लेकिन अगर आपको नजला, जुकाम या कफ आदि है तो दूध न लें। तब आप हल्दी को पानी के साथ ले सकते हैं।

आठ-दस तुलसी के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर लें या तुलसी के 10 पत्तों को पौने गिलास पानी में उबालें, जब वह आधा रह जाए तब उस पानी को पीएं।

विटामिन-सी से भरपूर चीजों का ज्यादा सेवन करें जैसे : एक दिन में दो आंवले, संतरे या मौसमी ले सकते हैं। यह हमारे इम्यून सिस्टम को सही रखता है।

अपने आप न आजमाएं

अपनी मर्जी से कोई भी एंटी-बायोटिक या कोई और दवा न लें। अगर बुखार ज्यादा है तो डॉक्टर के पास जाएं और उसकी सलाह से ही दवाई ले।

इन दिनों के बुखार में सिर्फ पैरासिटामोल ले सकते हैं। एस्प्रिन बिल्कुल न लें क्योंकि अगर डेंगू है तो एस्प्रिन या ब्रूफिन आदि लेने से प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं।

मामूली खांसी आदि होने पर भी अपने आप कोई दवाई न लें।

झोलाछाप डॉक्टरों के पास न जाएं। अक्सर ऐसे डॉक्टर बिना सोचे-समझे कोई भी दवाई दे देते हैं। Dexamethasone(जेनरिक नाम) का इंजेक्शन और टैब्लेट तो बिल्कुल न लंे। अक्सर झोलाछाप मरीजों को इसका इंजेक्शन और टैब्लेट दे देते हैं, जिससे मौत भी हो सकती है।

डेंगू से कैसे बचें

ये उपाय करके आप डेंगू से बच सकते हैं : एडीज मच्छरों को पैदा होने से रोकना।                                                       
                                                       एडीज मच्छरों के काटने से बचाव करना।

                           मच्छरों को पैदा होने से रोकने के उपाय

घर या ऑफिस के आसपास पानी जमा न होने दें, गड्ढों को मिट्टी से भर दें, रुकी हुई नालियों को साफ करें।
अगर पानी जमा होेने से रोकना मुमकिन नहीं है तो उसमें पेट्रोल या केरोसिन ऑयल डालें।

रूम कूलरों, फूलदानों का सारा पानी हफ्ते में एक बार और पक्षियों को दाना-पानी देने के बर्तन को रोज पूरी तरह से खाली करें, उन्हें सुखाएं और फिर भरें। घर में टूटे-फूटे डिब्बे, टायर, बर्तन, बोतलें आदि न रखें। अगर रखें तो उलटा करके रखें।

डेंगू के मच्छर साफ पानी में पनपते हैं, इसलिए पानी की टंकी को अच्छी तरह बंद करके रखें।
अगर मुमकिन हो तो खिड़कियों और दरवाजों पर महीन जाली लगवाकर मच्छरों को घर में आने से रोकें।
मच्छरों को भगाने और मारने के लिए मच्छरनाशक क्रीम, स्प्रे, मैट्स, कॉइल्स आदि इस्तेमाल करें। गुग्गुल के धुएं से मच्छर भगाना अच्छा देसी उपाय है।

घर के अंदर सभी जगहों में हफ्ते में एक बार मच्छरनाशक दवा का छिड़काव जरूर करें। यह दवाई फोटो-फ्रेम्स, पर्दों, कैलेंडरों आदि के पीछे और घर के स्टोर-रूम और सभी कोनों में जरूर छिड़कें। दवाई छिड़कते वक्त अपने मुंह और नाक पर कोई कपड़ा जरूर बांधें। साथ ही, खाने-पीने की सभी चीजों को ढककर रखें।

मच्छरों के काटने से बचाव

ऐसे कपड़े पहने, जिससे शरीर का ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सा ढका रहे। खासकर बच्चों के लिए यह सावधानी बहुत जरूरी है। बच्चों को मलेरिया सीजन में निक्कर व टी-शर्ट न पहनाएं।
बच्चों को मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं।
रात को सोते समय मच्छरदानी लगाएं।

ध्यान दें

इन दिनों बुखार होने पर सिर्फ पैरासिटामोल (क्रोसिन, कैलपोल आदि) लें। एस्प्रिन (डिस्प्रिन, इकोस्प्रिन) या एनॉलजेसिक (ब्रूफिन, कॉम्बिफ्लेम आदि) बिल्कुल न लें। क्योंकि अगर डेंगू है तो एस्प्रिन या ब्रूफिन आदि लेने से प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं और शरीर से ब्लीडिंग शुरू हो सकती है।

कई बार चौथे-पांचवें दिन बुखार कम होता है तो लगता है कि मरीज ठीक हो रहा है, जबकि ऐसे में अक्सर प्लेटलेट्स गिरने लगते हैं। बुखार कम होने के बाद भी एक-दो दिन में एक बार प्लेटलेट्स काउंट टेस्ट जरूर कराएं।

20 का फॉर्म्युला

डेंगू में कुछ एक्सपर्ट 20 के फॉर्म्युला की बात करते हैं। अगर धड़कन यानी पल्स रेट 20 बढ़ जाए, ऊपर का ब्लड प्रेशर 20 कम हो जाए, ऊपर और नीचे के ब्लड प्रेशर का फर्क 20 से कम हो जाए, प्लैटलेट्स 20 हजार से कम रह जाएं, शरीर के एक इंच एरिया में 20 से ज्यादा दाने पड़ जाएं - इस तरह का कोई भी लक्षण नजर आए तो मरीज को अस्पताल में जरूर भर्ती करना चाहिए।

अगर किसी को डेंगू हो गया है तो उसे मच्छरदानी के अंदर रखें, ताकि मच्छर उसे काटकर दूसरों में बीमारी न फैलाएं। 
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Friday 13 September 2013

United Nations News Centre - New chief of UN Women highlights girls’ education as priority to combat poverty, boost development

 Facilitating access to education for women and girls is vital to lift millions out of poverty and must be a priority for Governments and international organizations, the head of the United Nations entity tasked with advancing gender equality said today.

“Education is one of the founding services that all women and girls need to access in order for us to make a difference,” the Executive Director of the UN Entity for Gender Equity and the Empowerment of Women (UN Women), Phumzile Mlambo-Ngcuka, told reporters during her first press conference in New York. She 

UN Women Executive Director Phumzile Mlambo-Ngcuka and Nanette Braun, Chief of Communications and Advocacy, address press. Photo: UN Women
“Education is the foundation for everything we need to do to succeed,” she stressed, adding that this issue will feature prominently in the entity’s agenda as part of a push to accelerate the achievement of the anti-poverty targets known as the Millennium Development Goals (MDGs).
One of the goals is to ensure that, by 2015, children everywhere, boys and girls alike, will be able to complete a full course of primary schooling.
Ms. Mlambo-Ngcuka, who focused on several of her priorities for UN Women, underlined that it is not only crucial to facilitate access to education for girls but also to reduce the number of girls who drop out of school.
Another key priority will be ensuring women’s reproductive health rights, she said. “I see reproductive health and reproductive rights as an essential building block on which we need to serve the women, and I see economic empowerment as another important layer. Having those layers we can then address poverty and we will be able to lead to women’s emancipation. All of these are integral,” she said.
Working with men and boys is also important as they play an important role in actively fighting for the emancipation of women, she added.
During the press briefing, Ms. Mlambo-Ngcuka noted that while it is important to empower women and have their voices be heard, it is also important strengthen national institutions to better serve women’s needs.
“It is my hope and vision that together, and using the existing agreements as well as conventions, we are at a position where we can be game changers as far as supporting women’s emancipation,” she said.
“Women’s voices need to be heard but the public institutions that we lead need to serve women and women must feel the service that we are bringing to them.”
She added that UN Women will seek to collaborate and coordinate with organizations and institutions within and outside the UN with both the expertise and the resources to do advance women’s interests.
In addition, Ms. Mlambo-Ngcuka said another priority in her agenda will be to increase funding for the entity. UN Women will seek to work with Member States to increase their contributions, as well explore ways to diversify funding sources from the private sector, foundations, philanthropists and individuals, she said. UN Women is currently looking to raise $100 million by the end of 2013. 
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Patriarchal mindset should change: Kalpana Sharma

Mangalore: Patriarchal mindset should change: Kalpana Sharma

Mangalore: Patriarchal mindset should change: Kalpana Sharma
Pics: Spoorthi Ullal

Daijiworld Media Network – Mangalore (DV)


Mangalore, Sep 12: “After the rape of physiotherapy student in Delhi and of a photojournalist in Mumbai, the issue of violence against women is being seriously discussed throughout the country. Today, the phrase ‘women empowerment’ remains just a cliché. There is a need to discuss and change the mindset of men. Men’s perspective of viewing a woman as a commodity has to change,” said Kalpana Sharma, columnist and independent journalist.

She was addressing a UGC-sponsored national conference on ‘Education and Women Empowerment’ jointly organized by St Ann’s College of Education and state department of women and child development, held at St Ann’s College here on Thursday September 12.

She further said, “Those who have involved in sexual assaults against women are mostly teenagers. It is time we contemplated how boys are brought up in society. Studies have also found that most of the men commit violence against women as they feel they have sexual entitlement or as a form of punishment. Therefore patriarchal mindset should change. Society is trapped with stereotyped notion of ‘Masculinity’ which should be cleared. Today, women have started to think as well as dream big. Women have contributed to various fields. Even in sports they have achieved a lot."

In her key note address, Ammu Joseph, an independent journalist and writer said, “The situation is probably not very different here in Dakshina Kannada, which as far as I know has traditionally boasted higher women’s literacy rates and educational levels than elsewhere in Karnataka. News reports about moral policing in and around Mangalore over the past few years suggest that patriarchal mindsets are very much prevalent here, with various groups presuming to enforce their outdated notions concerning appropriate behaviour for the young and especially young women.

"Dowry deaths is one of the first issues of gender-based violence I had dealt with early in my career in 1970’s and early 80’s. It may not convince me that education leads to women empowerment. Many of the victims of what was known as ‘bride-burning’ were educated young women married to men from supposedly educated, middle class families. Unfortunately, education did not stand in the way of avaricious husbands and in-laws who either tortured or actually murdered these women who had entered their families in good faith. The census of India 2011 revealed that the child sex ratio had dropped from 927 females to 1000 males in 2001 to 914 females," she said.

Commenting on media’s focus on women she said, “Essentially the latest GMMP reveals that both globally and in this country many aspects of news coverage need to change, if society is to be realistically and accurately portrayed, and if women are to be proportionally and fairly represented in the media. At present, women comprise half or more of the global human population, but they constitute less than a quarter of news sources.”

Dr SR Leonilla Clair Menezes, principal of St Ann’s College of Education spoke on this occasion.
Dr Sr M Shalini AC, superior of St Ann’s Convent, Dr Shashikala A, co-coordinator were present.
Dr Padmavathi M, associate professor of the college welcomed the gathering.


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Wednesday 11 September 2013

कामकाजी महिला | बहुत कम लोग हैं जो इस बात को समझते हैं..


कल को आपकी शादी एक वर्किंग वुमन से भी हो सकती है, मगर शादी करने से पहले आपको इन बातों का ख्याल रखना होगा;

एक लड़की है, जो आपकी तरह ही पढ़ी-लिखी है और कमा भी रही है। उसके ख्वाब भी आपकी तरह ही हैं, क्योंकि वह भी आपकी तरह इंसान ही तो है। वह लड़की 25 सालों तक अपने पैरंट्स और भाई-बहनों के साथ रही, ठीक आपकी ही तरह। जिसने बड़ी ही बहादुरी से अपने घर और परिजनों को छोड़ने का फैसला कर लिया, ताकि आपके घर, आपके परिवार, तौर-तरीकों और परिवार के नाम को अपना सके।

जब वह लड़की नए हालात, नए माहौल से जूझ रही होती है, तब आप बेखबर होकर सो रहे होते हैं। और उस लड़की से उम्मीद की जाती है कि पहले ही दिन वह मास्टर शेफ बन जाए। वह लड़की कभी किचन में नहीं गई थी। ठीक आपकी बहन की तरह, जो कि अपनी पढ़ाई में बिज़ी होने या फिर दूसरे संघर्षों की वजह से ऐसा नहीं कर पाई। मगर ये सब बातें उस लड़की को किचन में किसी तरह की रियायत नहीं दिला पातीं।

उससे सुबह उठकर सबसे पहले चाय बनाने की उम्मीद की जाती है और दिन के आखिर में खाना बनाने की चाह रखी जाती है। इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह आपकी ही तरह या आपसे ज्यादा थकी-मांदी है। वह नौकर, कुक, मां और पत्नी जैसी भूमिकाएं एक साथ निभा रही होती है। भले ही यह सब करने का उसका मन न हो, मगर वह ये सब करती है। और ऊपर से उससे उम्मीद की जाती है कि वह इसके लिए उफ तक न करे।

वह समझने की कोशिश करती है कि आप उससे क्या उम्मीदें रखते हैं, क्या चाहते है। मगर उसे यह भी मालूम रहता है कि आपको उसका डिमांडिंग होना पसंद नहीं आएगा। उसे यह भी मालूम है कि अगर वह आपके मुकाबले जल्दी से सीखती-समझती है, तो आपको यह बात भी पसंद नहीं आएगी।

उसके अपने दोस्त होते हैं, जिनमें लड़के और उसके ऑफिस में काम करने वाले पुरुष भी शामिल हैं। वे लोग भी, जिन्हें वह स्कूल के दिनों से जानती है। मगर वह उन सबको छोड़ने के लिए तैयार है, ताकि आपको किसी तरह की जलन न हो और बेवजह इनसिक्यॉर न हो जाएं। हां, वह आपकी ही तरह ड्रिंक कर सकती है, डांस कर सकती है, मगर वह ऐसा नहीं करती। भले ही आप कुछ भी कहें, मगर आप इसे पसंद नहीं करेंगे। वह काम की डेडलाइन्स को पूरा करने के लिए कभी-कभी ऑफिस से लेट भी हो सकती है, जैसे कि आप भी होते हैं।

अगर आप उसकी थोड़ी सी मदद करें और उस पर ट्रस्ट करें, तो वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती है कि ताकि उसकी जिंदगी का सबसे खास रिश्ता कामयाब हो। पूरे घर में वह आपके ही सबसे ज्यादा करीब होती है। उसे आपसे कुछ ज्यादा नहीं चाहिए, वह आपसे सपोर्ट चाहती है और चाहती है कि आप सेंसिटिव रहें उसे लेकर। जो बात उसके लिए सबसे ज्यादा मायने रखती है, वह यह कि आप उसे समझें। जी हां, इस सब को आप प्यार कह सकते है। यानी वह बस इतना चाहती है कि आप उसे प्यार करें।मगर बहुत कम लोग हैं जो इस बात को समझते हैं...



Article on Navbharat Times 

Monday 9 September 2013

How to get Indian women on boards

Arun Duggal, Chairman, Shriram Capital in partnership with Anjali Bansal of Spencer Stuart India have spearheaded an initiative to get more women on corporate boards.
He speaks about the challenges and what the process has been like so far.

Tell us a little about yourself...
I am a retired banker. I spent the past 26 years in the Bank of America and this was my last posting before coming back to India.

I am now chairman of Shriram Capital. I am an independent director on several companies. I also teach and am a visiting faculty member at IIM Ahmedabad.
You’ve worked across the world and in leading organizations. Are you a risk taker? 

I’ve worked in various parts of banking and find it to be a process involving continuous challenges and learning.
What qualities do you look for when hiring graduates?
I don’t hire graduates so I will give a generic response here. One would look for technical competence, intellectual abilities, interpersonal skills and assessment in terms of morals and ethics.
You have started a program of mentoring women in the workplace. Is there a story/experience behind it that you’d like to share?
It was an issue that was being written about at the time. There was a lot of support for this idea. But the practical aspect was the availability for women at senior positions. We wanted to train between 50 and 60. But there are very few women already in these positions to train them.
We have people like Deepak Parekh, K V Kamath, Saroj Poddar, Hari Bhartia etc. who came on board. The idea is to one mentor would work with one woman for three months.
What does the term ‘board ready’ woman mean to you?
Better understanding of what regulations and law are. It means that a woman understands what it means to be an independent director with practical knowledge and human insight. She will be aware of strategy and corporate governance. She should know how an audit committee works and be ready to join a board of directors once the mentorship is complete.
How do women get involved in the initiative?
We are looking for 75 women of high potential. They can send their biodata and photo across to deepika@shriram.com .

Since we’re looking for people at the board level, we will be focusing on women who are above 40 and can demonstrate success in their professional life. We will be matching the skills of the women to that of the mentors. We are looking at training 100 women in the next 12 months.
How many applications have you received?
We have received around 75 applications. Most of them are from Mumbai and Delhi but we’ve also got a few from Hyderabad and Chennai. We need to match women with mentors in that city so it is easier for us to find mentors in larger cities. 
Is there anything else you would like to add?
According to the new Companies Act, there has to be one woman on the board. Now, 60 per cent of the BSE 500 companies don’t have a single female director so there is a gap in terms of requirement. Our effort is not a legal effort. We are looking at a high potential drive for women to be effective on boards.

Thursday 5 September 2013

शिक्षक नहीं, सेठ के भरोसे आज की शिक्षा

शिक्षित समाज के निर्माण में सबसे अहम भूमिका शिक्षकों की होती है, किंतु आज शिक्षक जिन हालात का सामने कर रहे हैं, यह बात बेमानी जान पड़ती है | 
उदारीकरण की आंधी के बाद हमारे देश के नीति निर्धारकों ने शिक्षक नाम की संस्था को समाज के हाशिए पर ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. आज शिक्षकों के आगे कई चुनौतियां हैं. ये चुनौतियां हमारी सरकार ने ही पैदा की हैं. शिक्षा के नाम पर उसने जो भी कदम उठाए हैं, उससे न तो शिक्षा की हालत सुधर रही है और न शिक्षकों की. हाल में सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून बनाया लेकिन इसमें शिक्षकों के लिए विशेष कुछ भी नहीं था. इसके अलावा, शिक्षा का आज इस कदर बाजारीकरण हो चुका है कि शिक्षकों की कीमत न तो पहचानने वाला कोई है और न ही शिक्षक अपने मूल्यों की रक्षा करने को लेकर पहले की तरह सचेत हैं. देश की शिक्षा नीति पर विश्व बैंक की नीतियां हावी दिखती हैं.
शिक्षा व्यवस्था पर कॉरपोरेट घरानों का असर दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. आज केंद्रीय शिक्षक हों या राज्य सरकार के, सभी का काडर तहस-नहस हो चुका है. नीतियां ऐसी हैं कि स्कूल-कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी है. जो शिक्षक हैं, उनमें से ज्यादातर अप्रशिक्षित हैं. सरकार को इससे कोई मतलब नहीं कि ऐसे शिक्षक अपनी जिम्मेदारी निभाने में अक्षम हैं. सच्चाई यही है कि सरकार शिक्षकों की अहमियत समझना नहीं चाहती. वह बस कामचलाऊ रवैया अपनाए हुए है ताकि डिग्री बांटने का काम चलता रहे. अप्रशिक्षित शिक्षकों के लिए शिक्षण कार्य मिशन नहीं होता, इस बात से सरकार को कोई मतलब नहीं है. फिर सरकार उन्हें पर्याप्त वेतन भी नहीं देती. ऐसे में ये शिक्षक मजबूरन पढ़ाई पर अधिक ध्यान नहीं दे पाते.
दरअसल, सरकार नई शिक्षा नीति के जरिए ऐसी व्यवस्था करने पर आमादा है जिसमें शिक्षा और शिक्षक दोनों के लिए कम जगह हो और लोगों के प्रति भी उसकी कोई जवाबदेही न हो. सरकार अब परोक्ष नहीं बल्कि प्रत्यक्ष तौर पर यह चाहती है कि शिक्षा पर कॉरपोरेट हावी हों. इसके लिए वह लगातार नए-नए शिगूफे छोड़ रही है. सरकार अगर शिक्षा के प्रति वाकई गंभीर होती तो वह समान स्कूल प्रणाली और पड़ोसी स्कूल की अवधारणा पर काम करती, जिसकी अनुशंसा कोठारी कमीशन ने भी की थी. इसकी जगह वह पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप जैसी योजनाओं पर जोर दे रही है. इस योजना में सरकारी धन तो लग रहा है लेकिन लाभ निजी एजेंसियां कमा रही हैं. शिक्षकों को सरकारी फैसलों के खिलाफ आवाज बुलंद करनी चाहिए.
शिक्षक संगठनों ने प्रारंभ में ऐसा किया भी था लेकिन बाद में चुप्पी साध बैठे. इस समय शिक्षकों के सम्मान के लिए सबसे जरूरी यह है कि उनके काडर को बचाया जाए और शिक्षा के महती कार्य में बगैर किसी व्यवधान के उन्हें लगाया जाए. स्कूल-कॉलेजों में शिक्षकों के जितने खाली पद हैं, उन्हें भी अविलंब भरा जाना चाहिए. शिक्षक तभी सम्मानित रह पाएंगे जब शिक्षा पर सरकारी पकड़ बनी रहे. शिक्षा को बाजार के हवाले करने का अर्थ यही है कि शिक्षक भी बाजार के हवाले हैं. मैं समझता हूं कि शिक्षक जिन मूल्यों के संवाहक हैं, वह शिक्षा के बाजारीकरण के दौर में कभी भी सुरक्षित नहीं रह सकते.
पांच साल पहले मुंबई में आयोजित एक शैक्षिक सेमिनार में अंग्रेजी के एक राष्ट्रीय दैनिक के संपादक ने गर्व से बताया कि 1970 के दशक में कक्षा सात तक उन्होंने मुंबई महानगरपालिका के स्कूल में पढ़ाई की. जाहिर है, उनकी शिक्षा का माध्यम मराठी था. विडंबना देखिए कि उसी महानगरपालिका ने हाल में फैसला लिया है कि वह अपने 1200 प्राथमिक स्कूलों को कॉरपोरेट और एनजीओ को सौंपेगी. कारण बताया गया कि इन्हें गुणवत्ता के साथ चलाना महानगरपालिका के बस का नहीं है. मुंबई की यह सोच पूरे देश की सोच बन चुकी है.
पिछले साल कर्नाटक सरकार ने 3000 सरकारी स्कूलों को बंद करने की घोषणा की. इसी सरकार ने कुछ साल पहले प्रदेश की शैक्षिक शोध और प्रशिक्षण परिषद को देश के एक ताकतवर कॉरपोरेट को सौंपने का फैसला ले लिया था. हालांकि लोगों के तीखे विरोध के कारण उसकी मंशा कामयाब नहीं हो पाई. सरकार की मंशा देश के 12 लाख सरकारी स्कूलों की व्यवस्था खत्म करने की है. इसकी जगह मनमाफिक फीस लेने वाले निजी स्कूल रह जाएंगे.
गौर करने वाली बात है कि 1991 में जब वैश्विक की नीतियों पर भारत के चलने की घोषणा हुई तो शिक्षा की बागडोर सरकार ने अपनी हाथों से छोड़ना तय किया. 1990 में भारत शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का चार प्रतिशत खर्च करता था, जो घटते-घटते आज 3.5 फीसद पर आ टिका है. कोठारी आयोग के अनुसार यह राशि छह प्रतिशत तय की गई थी. जाहिर है, जरूरत की तुलना में आधी से थोड़ी ही अधिक राशि खर्च की जा रही है. उच्च शिक्षा को तो और भी बिकाऊ माल बनाकर छोड़ा गया है.
आज सरकार के पास 500 से अधिक विश्वविद्यालयों और 25 हजार कॉलेजों की बेहतरी के लिए कोई ठोस योजना नहीं है. निजी विश्वविद्यालय फटाफट खुल रहे हैं और इनका एकमात्र ध्येय शिक्षा का व्यवसायीकरण कर पैसों का दोहन करना है. हम सुपर पॉवर होने की बात करते हैं लेकिन जा किस रास्ते पर रहे हैं? दुनिया की आबादी में हमारा हिस्सा सत्रह प्रतिशत है जबकि अमेरिका का केवल साढ़े चार प्रतिशत. जाहिर है, ऐसे में अगर हमारी शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त होती तो बेहतर मानव संसाधन हमारे पास होता और हम आगे निकल गए होते. शिक्षा का मकसद तो बेहतर समाज का निर्माण करना है जबकि सरकार वैश्विक बाजार और पूंजी के लिए पैदल सिपाहियों की फौज खड़ी करने में जुटी है.
शिक्षा का स्तर सुधरने का मतलब यह नहीं कि हमारे यहां स्नातकों की भीड़ हो जाए. हमारे पास स्नातक भले ही अमेरिका से अधिक हों, लेकिन हम फिर भी पिछड़ेंगे. कारण, वहां जो शोध होगा, वह हमसे काफी बेहतर होगा. इंजीनियरिंग और मेडिकल क्षेत्र में भी ऐसा ही हाल है. लोगों को डिग्रियों के बाद भी नौकरी नहीं मिल रही. क्या हम सोचेंगे कि हम कैसा समाज बनाने जा रहे हैं?
हमारे संविधान का तकाजा यही है कि हर बच्चे को केजी से लेकर पीजी तक मुफ्त शिक्षा का बराबरी का अवसर मिले. इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि उन देशों ने ही शैक्षिक-बौद्धिक तरक्की हासिल की है जहां समान स्कूल व्यवस्था का ऐतिहासिक विकल्प अपनाया गया है. अमेरिका, रूस, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, जापान सब देशों पर यही बात लागू होती है. हाल में फिनलैंड ने इस व्यवस्था को अपनाया. तीन दशक पहले यह देश शिक्षा में यूरोप के देशों में सबसे नीचे था लेकिन नई राह पर चल कर इसने क्रांति ला दी. आज वहां एक भी निजी स्कूल और कॉलेज नहीं है और वहां की शिक्षा व्यवस्था बेहतरीन है. हम जैसे शिक्षक बना रहे हैं, हो सकता है, उनसे बेहतर वहां के छात्र हों. यह अतिशयोक्ति लग सकती है लेकिन हम इसी राह पर हैं. क्या हम अपनी राह बदलेंगे?